सफलता की कहानी “पोषण भी, पढ़ाई भी” शिक्षा और स्वास्थ्य का अद्भुत संगम, सामुदायिक सहभागिता से बच्चों में बढ़ा आत्मविश्वास और सीखने की रुचि

एमसीबी/13 अक्टूबर 2025/ एकीकृत बाल विकास परियोजना मनेन्द्रगढ़ के अंतर्गत “पोषण भी, पढ़ाई भी” कार्यक्रम ने बाल विकास की दिशा में एक नई ऊर्जा और नई सोच का संचार किया है। मनेन्द्रगढ़ शहरी सेक्टर में आयोजित यह विशेष गतिविधि न केवल बच्चों के सर्वांगीण विकास का प्रतीक बनी, बल्कि माताओं, किशोरियों और समुदाय के लोगों के लिए भी यह जागरूकता का मंच साबित हुई। महिला एवं बाल विकास विभाग की यह पहल, शिक्षा और पोषण के बीच की कड़ी को मजबूत करने का एक सशक्त प्रयास है। इस कार्यक्रम की मुख्य थीम ECCE (Early Childhood Care and Education) के अंतर्गत थी, जिसका उद्देश्य बच्चों में प्रारंभिक आयु से ही सीखने की प्रवृत्ति, खेलकूद की समझ और स्वस्थ पोषण की आदतें विकसित करना रहा। सुपरवाइजर श्रीमती पूनम सिंह गहरवार के नेतृत्व में यह आयोजन अत्यंत प्रभावशाली ढंग से संपन्न हुआ। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती पुष्पा एक्का, रीना सेन, सहायिका जयन्ति और श्रीमती माला पुरी ने अपने समर्पण से इस कार्यक्रम को जीवंत बना दिया। हितग्राही महिलाओं, वार्ड वासियों, किशोरियों और स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष के सहयोग से यह आयोजन सामुदायिक सहभागिता का उदाहरण बन गया।

समर्पण और सहयोग की प्रेरणादायी मिसाल
“पोषण भी, पढ़ाई भी” कार्यक्रम का मूल उद्देश्य यह बताना था कि बच्चों की शिक्षा तभी सार्थक हो सकती है जब उनके स्वास्थ्य और पोषण पर बराबर ध्यान दिया जाए। इस आयोजन के दौरान आंगनबाड़ी केंद्रों में रंगोली, पोस्टर और झांकी के माध्यम से पोषण और शिक्षा के महत्व को सरल और आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया गया। बच्चों ने रंग-बिरंगे चित्रों के माध्यम से ‘संतुलित आहार’ और ‘साफ-सफाई’ की झलकियां दिखाईं, जिससे उपस्थित लोगों ने गहराई से यह समझा कि एक स्वस्थ बच्चा ही देश का भविष्य होता है।
सुपरवाइजर श्रीमती पूनम सिंह गहरवार ने बताया कि बच्चों के मस्तिष्क का विकास प्रारंभिक छह वर्षों में सबसे तेज़ होता है, इसलिए इस आयु में उन्हें पौष्टिक भोजन, खेल, कहानी और रचनात्मक गतिविधियों से जोड़ना आवश्यक है। इस दिशा में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती पुष्पा एक्का और रीना सेन ने घर-घर जाकर माताओं को यह समझाया कि सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि “सही भोजन” ही बच्चे के विकास की कुंजी है। सहायिका जयन्ति और श्रीमती माला पुरी ने मिलकर बच्चों के लिए पौष्टिक खिचड़ी, फल और दाल का वितरण कराया, जिससे कार्यक्रम का व्यावहारिक प्रभाव भी देखा जा सका। कार्यक्रम में करीब 40 से 50 हितग्राहियों की भागीदारी रही। इनमें माताएँ, किशोरियाँ, स्व-सहायता समूह की महिलाएँ और स्थानीय वार्डवासी शामिल थे। सभी ने एक स्वर में यह स्वीकार किया कि आंगनबाड़ी केंद्र अब केवल बच्चों के लिए नहीं, बल्कि पूरे समुदाय के सीखने और बदलने का केंद्र बन चुके हैं।

बदलाव की शुरुआत: समुदाय में जागरूकता और बच्चों में बढ़ रहा आत्मविश्वास
इस कार्यक्रम का सबसे बड़ा प्रभाव यह रहा कि बच्चों और माताओं दोनों में नई सोच का विकास हुआ। जहाँ पहले पोषण को केवल भोजन से जोड़ा जाता था, अब शिक्षा, खेल और स्वच्छता को भी समान रूप से महत्व दिया जाने लगा। बच्चे अब आंगनबाड़ी केंद्रों में केवल खेलने या खाने नहीं आते, बल्कि वे वहाँ अक्षर ज्ञान, रंग पहचान, गिनती और गीतों के माध्यम से सीखने का आनंद लेने लगे हैं। मनेन्द्रगढ़ शहरी सेक्टर के इस कार्यक्रम ने यह साबित किया कि सरकारी योजनाएँ जब जनसहभागिता से जुड़ती हैं, तो वे सिर्फ कागज़ी पहल नहीं रहतीं, बल्कि समाज में वास्तविक बदलाव लाती हैं। स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष ने बताया कि पहले महिलाओं को बच्चों के पोषण के बारे में कम जानकारी थी, पर अब वे स्वयं पौष्टिक भोजन तैयार करने और बच्चों को साफ-सुथरा वातावरण देने में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।
इस कार्यक्रम ने माताओं में यह विश्वास भी जगाया कि शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। जो बच्चा आज संतुलित आहार लेगा, वही कल ध्यान केंद्रित कर बेहतर शिक्षा प्राप्त करेगा। यही कारण है कि अब मनेन्द्रगढ़ शहरी क्षेत्र के आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ी है, उनकी सीखने की रुचि भी बढ़ी है, और माताओं की सहभागिता ने इस परिवर्तन को स्थायी बना दिया है।
बाल विकास की दिशा में मनेन्द्रगढ़ बना आदर्श
“पोषण भी, पढ़ाई भी” कार्यक्रम मनेन्द्रगढ़ की एक ऐसी सफलता की कहानी है जिसने यह संदेश दिया कि बाल विकास केवल सरकारी प्रयासों से नहीं, बल्कि समुदाय की सक्रिय भागीदारी से संभव है। सुपरवाइजर, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं, स्व-सहायता समूहों और वार्डवासियों ने मिलकर जो समर्पण दिखाया, वह भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन गया है।
आज मनेन्द्रगढ़ के आंगनबाड़ी केंद्रों में हर बच्चा मुस्कुराता हुआ, रंगों से खेलता हुआ और अक्षर ज्ञान की ओर बढ़ता दिखाई देता है। यह मुस्कान सिर्फ एक बच्चे की नहीं, बल्कि पूरे समाज की प्रगति की पहचान है।

ब्युरो रिपोर्ट

 

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