बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भतीजी के साथ जबरन यौन संबंध बनाने के एक मामले में आरोपी की आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 10 साल के सश्रम कारावास में बदल दिया। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के नाबालिग होने का कोई पक्का सबूत नहीं मिला। जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की बेंच ने यह फैसला सुनाया। 20 दिसंबर 2018 को पीड़िता ने थाने में शिकायत दर्ज की थी। उसने बताया कि माता-पिता के अलग होने के बाद 5 दिसंबर 2018 को चाचा ने उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए। पीड़िता ने अपनी मौसी को आपबीती सुनाई, जिसके बाद मामला पुलिस तक पहुंचा। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया और जांच के बाद कोर्ट में चार्जशीट पेश की। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को पॉक्सो एक्ट के तहत आजीवन कारावास की सजा दी थी।
आरोपी ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने पीड़िता की उम्र को लेकर सबूतों की बारीकी से जांच की। पीड़िता ने अपनी उम्र 14 साल बताई थी और उसकी मां ने जन्मतिथि 5 जून 2005 बताई। स्कूल रजिस्टर में भी यही जन्मतिथि दर्ज थी, लेकिन स्कूल की प्रधानाचार्य ने कहा कि पीड़िता के दाखिले के समय वह वहां पदस्थ नहीं थीं और रजिस्टर की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं कर सकतीं। कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष पीड़िता के नाबालिग होने का ठोस सबूत पेश नहीं कर सका। इसलिए पॉक्सो एक्ट के बजाय भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(एफ) के तहत सजा को 10 साल के सश्रम कारावास में बदला गया।जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा कि घटना के समय पीड़िता नाबालिग थी। ट्रायल कोर्ट ने विवादित सबूतों के आधार पर उसे नाबालिग मान लिया, जो गलत था। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि अपराध की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया गया, लेकिन सजा को सबूतों के आधार पर ही तय किया गया है।
ब्युरो रिपोर्ट





