मैदानी क्षेत्रों से विदाई के बाद, क्या होगी दुबराज धान की वापसी ?

इसलिए मैदानी क्षेत्रों से विदाई

मानक से ज्यादा ऊंचाई। कोमल तना और तेज हवा के प्रति असहनशीलता के अलावा नई बारीक धान की प्रजातियों की तुलना में प्रति एकड़ कमजोर उत्पादन ने भी मैदानी क्षेत्र के किसानों को दुबराज का साथ छोड़ने पर विवश किया। मजबूर थीं बारीक चावल उत्पादन करने वाली इकाईयां क्योंकि नई प्रजातियों के सामने दुबराज चावल की मांग तेजी से घट रही थी।

विदाई 2010 से

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक दुबराज का साथ किसानों ने सन 2010 से ही छोड़ना शुरू कर दिया था क्योंकि तब तक एचएमटी, जवा फूल, जीरा फूल और विष्णुभोग जैसी निश्चित कीमत देने वाली धान की बारीक किस्में आ गई थी। यह प्रजातियां दुबराज में आने वाली सभी समस्या से मुक्त थीं। इसलिए किसानों ने दुबराज को छोड़ना चालू कर दिया। अब स्थिति यह है कि मैदानी क्षेत्र से यह प्रजाति खात्मे की ओर है।

प्रसिद्ध था चावल भाटापारा का

उच्चतम कीमत और चावल की अंतरप्रांतीय मांग से प्रदेश के लगभग हर जिले के किसान दुबराज धान का विक्रय करने आते थे। अभी भी आ रहे हैं लेकिन दुबराज नहीं बल्कि अन्य बारीक प्रजातियां लेकर लेकिन अब फिर से कोशिशों की खबर के बाद किसान दुबराज की बोनी को लेकर उत्साह दिखा रहे हैं लेकिन बड़ी बाधा वह प्रोत्साहन राशि बन रही है, जिसकी मांग पर सरकार फिलहाल चुप है।

 

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