पण्डो जनजाति बाहुल्य संपूर्ण ग्राम ने जिला कलेक्टर से लगाई गुहार कहा: साहब! हमारा गांव कहां है इसका कोई रिकार्ड नही? इसे ग्राम में जुड़वा दो साहब।

एस. के.‘रूप’

एमसीबी/ भूलन द मेज छत्तीसगढ़ की राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म है इस फिल्म में भकला और उसके पड़ोसी बिरजू के जमीन विवाद का सुंदर चित्रण है और भूलन कांदा में पैर रखते ही आदमी वही वही घूमने लग जाता है दरअसल भकला एक निर्दोष और ठेठ देहाती है जो एक चींटी की भी जान नही ले सकता था लेकिन बिरजू जो अक्सर सबसे झगड़ता रहता था और भकला के जमीन में अपना अधिकार जताता है इसी बीच भकला और उसकी पत्नी प्रेमिन खेत काम करने जाते है और बिरजू वहां आ जाता है खेती करने से रोकने दोनो के बीच विवाद होता है और हाथापाई तक बात पहुंच जाती है इस दौरान बिरजू हल में जा गिरता है जिसका फर लगने से उसकी इहलिला समाप्त हो जाती है इधर सारा गांव मुखिया तक भकला का साथ देते है क्योंकि सब जानते है भकला निर्दोष है मामला कोर्ट में जाता है सुंदर जिरह होती है और अंत में भकला दोषमुक्त होता है।

यह तो रही अति संक्षेप में इस फिल्म की कहानी लेकिन ऐसा हुआ क्यों? भकला और बिरजू की लड़ाई हुई क्यों ?जान पर क्यों बन आई? निर्दोष ग्राम का बाबा गंजहा क्यों जेल भोगा? भकला को और उसके परिवार के साथ सारे गांव को क्यों यातनाएं झेलनी पड़ी इसका कारण था बंदोबस्त त्रुटि। आपको बता दें पिछले बंदोबस्त में कई त्रुटि हुई है यह भुलन कांदा उपन्यास सत्य है सार्थक है और उसके लेखक डॉ संजीव बक्शी का सम्यक क्रांति के संपादक एस. के.‘रूप’ से आत्मिक मधुर साहित्यिक संबध है। ऐसे लेखक बधाई के पात्र है जिन्होंने दिखाया है कि ग्रामीण कैसे बंदोबस्त में हुई त्रुटि को लेकर परेशान है उनका घर परिवार उजड़ जा रहा है उनके जान पर बन आ रही है जिसने वृक्ष लगाया, कुंआ खोदा,फसल जिस भूमि पर लगाते आ रहा था वह किसी और के नाम पर दर्ज हो गई और कही कही तो भूमि ही नही है। और कही कही तो गांव ही नही है। डॉ संजीव बक्शी ने अपने उपन्यास में शानदार चित्रण किया और इसे चलचित्र में लाने वाले फिल्म के निर्देशक मनोज वर्मा बधाई के पात्र है।

यही समस्या कई कई ग्राम की है जिनका नाम ही नही नही है। इससे वे हर एक सुविधाओ से वंचित है क्योंकि प्रत्येक ग्रामीण सुविधा में योजनाओं में जमीन का नक्शा,खसरा,पट्टा आदि की जरूरत पड़ती है और जहां गांव का ही नाम मिट जाए जबकि पूर्वज जमाने से शताधिक वर्ष से ग्रामीण वही निवासरत है तब यह व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देता है कि अगर त्रुटि है तो उसका सुधार क्यों नही। यहां भू माफिया की भी बांछे खिल उठती है और वह उस जमीन पर अपना अधिकार करके निरीह ग्रामीण को निकाल बाहर कर देते है। साथ ही जो धनाढ्य वर्ग है वे पैसा खिलाकर अपने नाम जमीन कर लेते है ऐसा कई मौके पर देखा गया है।

बहरहाल हम बात कर रहे है छत्तीसगढ़ प्रदेश के एमसीबी जिले के भरतपुर विकासखंड के ग्राम पंचायत घघरा आश्रित ग्राम पोंडीडोल की। यह ग्राम राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र जनजाति पण्डो बाहुल्य ग्राम है जिसमे कोई मूलभूत सुविधा नही थी। जनहित संघ के केंद्रीय उपाध्यक्ष श्री रूप ने प्रशासन को इसके बारे में जानकारी दी वहीं मुख्यमंत्री से लेकर जिले प्रमुख तक आवेदन दिया विगत वर्ष 30 सितंबर 2024 को सर्वहित जनांदोलन क्रांति यात्रा जुलूस में अपनी 36 सूत्रीय मांग में उक्त मांग प्रमुखता से रखी ।

ग्राम में सड़क निर्माण की सुविधा हो या संचार की सुविधा अथवा विकलांग वर्ग की सहायता या स्वास्थ्य, सड़क,शिक्षा, जनहित संघ ने हर एक समस्या पर जिला प्रमुख आदि को अवगत कराया और शिविर आदि के माध्यम से निराकरण हुए है जिसके लिए जिला प्रशासन बधाई के पात्र है। आय जाति आधार आदि के कार्य तीव्रता से हुए है। जनकपुर के सामुदायिक स्वस्थ्य केंद्र में सुविधा हो या रांपा घघरा में संचार सुविधा अथवा संपूर्ण विकासखंड में सड़क निर्माण इसका श्रेय भले ही कोई और ले लेकिन सत्य, साक्ष्य प्रमाण और कागज जनहित के पास सुरक्षित है जनहित संघ के केंद्रीय उपाध्यक्ष ने राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री,सहित गृह मंत्री आदि सभी से मिलकर उक्त ज्ञापन दिया और मांग की थी जिसमे उनके साथ राष्ट्रपति के दत्तक जनजाति के रामशरण पण्डो अख्तवार और सोनसाय पण्डो मौजूद थे इन पण्डो भाइयों से खुद गृहमंत्री ने भेंट की थी और व्यस्ततम समय होने के बावजूद उन्ही से चर्चा की और पूछा क्यों भाई क्या समस्या है बताओ? तब उन्होंने अपनी समस्या बताई जिस पर उन्होने ज्ञापन लेते हुए त्वरित कार्यवाही की बात कही। सभी 36 सूत्रीय मांगो में से कई मांग पूरी हुई है।

अब ग्रामीणों ने अपने गांव के लिए जिला कलेक्टर से गुहार लगाई है और कहा है कि वो दहशत में है उनकी रक्षा हो ऐसा इसलिए क्योंकि वन विभाग का भ्रष्ट रेंजर बहरासी इंद्रभान पटेल उसके सहयोगिगण पण्डो जनजाति से दुश्मनी करके बैठे है ।गलत आप स्वयं करें और निरीह जनजाति के लोग अपने स्वत्व हेतु अगर विरोध करें तो उन्हे कुचले, ये कहां तक जायज है? यह वही रेंजर है जिनके विरुद्ध कई शिकायतें है पौधा रोपण, वन तस्करी को संरक्षण आदि । विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इन्होंने बहरासी में ही पौधारोपण में कई करोड़ों का घोटाला किया है बांस बगान,औषधि रोपण के साथ केंपा, विभागीय अन्य मद का दुरुपयोग और बंदरबाट किया है। इस रेंजर के खिलाफ आगामी बैठक में रूपरेखा तैयार होगी इन्होने ग्रामीणों के शताधिक वर्षों का मार्ग अवरूद्ध कर दिया ये प्लांटेशन वहां करते है जहां ग्रामीणों की जमीन है और पूरे गांव को थाने का उलटा पुल्टा नोटिक नाम कुछ पति का नाम कुछ करके नोटिस थमा देते हैंकी ग्रामीण उपद्रवी है इन्होंने भोली भाली मासूम ग्रामीण महिलाओं तक को नहीं छोड़ा अपने गलत कार्य को सिद्ध करने और ग्रामीणों में डर भय का माहौल बनाने थाने का नोटिस भेजा ताकि ग्रामीण डरे रहे और ये जंगलराज चलाते रहे इसकी शिकायत देश प्रमुख तक होगी जिसे उन्हें सिद्ध करना होगा। यह रेंजर गरीबों का घर ढहा देते है जो 2006 से पहले के कब्जा धारी है ये वन अधिकार अधिनियम का खुला उलंघन करते है अमीरों का आशियाना जो 2020 में बना उसे कुछ नई करते है। जो दिखाता है कि ये भ्रष्ट है, प्रश्न यह भी उठता है कि इन्हे किसका संरक्षण प्राप्त है?

ग्राम पोंडीडोल का कमिश्नर सरगुजा संभाग ने निरीक्षण किया था उन्होंने देखा के ग्राम में मूलभूत सुविधाओं जैसे पानी,नाली,सड़क,विद्युत,संचार,शिक्षा,भूमि मामला निराकरण आदि का अभाव है उन्होंने अधिकारियों को निर्देशित किया। उनके निर्देशन में स्टाप डेम,नहर नाली निर्माण आदि के लिए स्थल का मुआयना, निरीक्षण, ग्राम सभा का अनुमोदन, तकनीकी स्वीकृति भी हो गई फिर भी अभी तक ना तो सही तरीके से बिजली मिला न अन्य कार्य शुरू हुए क्योंकि प्रशासकीय स्वीकृति नहीं हुई है जिसमे लिए भी आवेदन लगा हुआ है निर्माण कार्य कोई बड़े नही है उतने की राशि जिला प्रशासन ही आसानी से देकर ग्रामीणों को लाभान्वित कर सकता है लेकिन आज दिनांक तक उक्त कार्य अधर में ही है।
फिलहाल ग्रामीणों का केवल इतना कहना है कि हमे हमारा जमीन का सीमांकन करके उसका नक्शा काट दीजिए फिर जहां पौधा लगाना है लगा लीजिए साहब तो क्या वे गलत है? राजस्व रिकार्ड में पूरा गांव नही है वर्तमान में पुराने रिकॉर्ड में है जो जनहित संघ के कार्यालय में सुरक्षित भी है। इधर जब पूर्वजों ने सौ साल से जहां खेती की है वही प्लांटेशन होगा तो विरोध तो ग्रामीण करेंगे ही।लेकिन यहां तो संविधान की पांचवी अनुसूची और पेशा एक्ट का खुला उलंघन हो रहा है जो कहता है कि आदिवासी की काबिज भूमि में उसका हक पहले है यहां तो वन जबरन अपना हक जाता रहा है। इसके साथ महामहिम राज्यपाल के जनजातियों पर आदेश की अवहेलना है।राजस्व की भूमि को अपनी भूमि बता रहे है। और यह सब बंदोबस्त में हुई त्रुटि के कारण और कार्य करने वालो के सुस्त रवैए के कारण। अगर ग्राम पंचायत घघरा के नक्शे में उक्त ग्राम का भाग दिखता तो क्या परेशानी थी। सीमांकन हो जाता क्योंकि पट्टा तो ग्रामीणों को पहले तिरंगा पट्टा मिला था। तिरंगा पट्टे के बाद किसान किताब भी है जो उनके पूर्वजों के नाम में थी जिसका फौत नामांतरण जनहित के प्रयास और प्रशासन के सहयोग से हो गया है पट्टा भी मिल गया है लेकिन अफसोस की जमीन ही नही पता तो क्या करे ग्रामीण इस संबंध में तहसील कार्यालय का कहना है सर्वे होगा तब नए सिरे से ग्राम का नाम,नक्शा जोड़ने का कार्य होगा इसके लिए जिला प्रमुख का आदेश होना जरूरी है।

आपको बता दें ग्राम पोंडीडोल के ग्रामीण संत्रस्त है निरीह, गरीब पण्डो जनजाति को जिला कलेक्टर से न्याय की उम्मीद है उन्होंने बीते 18 नवंबर 2025 को कलेक्टर जनदर्शन में अपनी मांग रखी जिसमे उल्लेखित है कि जिसमे उल्लेखित है कि –मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर के विकासखंड भरतपुर ग्राम पंचायत घघरा आश्रित ग्राम पोड़ी डोल राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र, राज्य की अनुसूचि में शामिल विशेष पिछड़ी जनजाति पण्डो बाहुल्य संपूर्ण ग्राम का राजस्व रिकॉर्ड नक्शा खसरा, ऑनलाइन, ऑफलाइन दुरुस्तीकरण, पुराने नक्शे के आधार पर संपूर्ण ग्राम को नवीन सर्वे उपरांत ग्राम घघरा में जोड़ने और भूमि सीमांकन बावत्।

महोदय,

विषयांतर्गत लेख है कि जिला एसीबी के विकासखंड भरतपुर के ग्राम पंचायत घघरा आश्रित हमारा ग्राम पोंडीडोल राष्ट्रपति के दत्तकपुत्र, राज्य की अनुसूचि में शामिल विशेष पिछड़ी जनजाति पण्डो बाहुल्य संपूर्ण ग्राम आज दिनांक तक वीरान बस्ती की श्रेणी में है। राजस्व रिकॉर्ड में उक्त पूरे ग्राम को बंदोबस्त सेटलमेंट पश्चात् नहीं जोड़ा गया है, राजस्व रिकॉर्ड नक्शा खसरा, बी वन भू-अधिकार ऑनलाइन व ऑफलाइन वर्तमान में दुरुस्त नहीं है।
घघरा आश्रित ग्राम पोडीडोल विशेष पिछड़ी जनजाति बाहुल्य ग्राम को मार्किंग करके बंदोबस्त में छोड़ दिया गया जबकि काबिज काश्त पहले भी हम जनजातीय पण्डो वर्ग आज भी वही मौके पर ही है, हम आदिवासी गरीब किसान नक्शा के न होने से अपनी भूमि से अनजान है। हमारी भूमि पर (अपने पूर्वजों के बताएं अनुसार रह रहे है) रसूखदारों के द्वारा अतिक्रमण का भय व्याप्त है. साथ ही वन विभाग के अधिकारियों द्वारा बार बार प्रताड़ित और भय दिखाकर झूठे केस और थाने की धमकी दी जाती है। कौन किसकी जमीन है और कहां है इससे अनजान है। हमारे पास पट्टा है। किंतु भूमि के सीमांकन नही होने से भय व्याप्त है अनजान है।ग्राम का पुनः सर्वे कराकर ग्राम पंचायत घघरा के नक्शे में जोड़ा जाना बहुत आवश्यक है क्योंकि हमारा ग्राम प्रशासनिक सुविधा, अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति एवं मूलभूत सुविधाओं सहित संचार सुविधाओं आदि से भी वंचित है हम ग्रामीण खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। राजस्व अधिकारियों के अनुसार नक्शा नहीं होने के कारण हमारे ग्राम का अन्य रिकार्ड दुरुस्त नहीं हो पाया है। इस हेतु से ग्राम सभा का प्रस्ताव भी पारित किया गया है जो इस आवेदन के साथ संलग्न है।

आत. श्रीमान जी से निवेदन है हम जनजातियों पर कृपा कर त्वरित संज्ञान में लेकर पुनः सर्वे, नवीन अधिसूचना एवं उसका राजपत्र में प्रकाशन सहित ग्राम पंचायत घघरा के नक्शे में पुनः जोड़ने हेतु जनहित में आगे की कार्यवाही करने की महान कृपा करेंगे।

अर्थात काबिज काश्त ग्रामीण पहले भी वही थे आज भी वही पण्डो जनजाति है बंदोबस्त में हुई त्रुटि के पश्चात उसे सही करके घघरा के नक्शे में नही जोड़ा गया है ग्राम का शासकीय रिकार्ड में कोई दुरुस्ती नही है। पहले इसका अधिकार राज्य को था किंतु मिली जानकारी के अनुसार अब जिला कलेक्टर को इसका अधिकार है। ग्राम का पुनः सर्वे हो और छत्तीसगढ़ के राजपत्र में प्रकाशन के साथ ग्राम पंचायत घघरा के नक्शे में दर्ज होने, साथ ही राजस्व रिकार्ड में दर्ज होना जरूरी है जबकि ग्राम पंचायत ने विशेष ग्राम सभा बुलाकर प्रस्ताव भी पारित कर दिया है। जिला कलेक्टर ने भी ग्रामीणों को पूर्ण आश्वासन दिया है कि फसल पूर्ण कटाई के बाद उक्त कार्य को करा दिया जाएगा।अब तो फसल की खरीदी भी हो रही है।अब देखना यह है कि कब तक जिला प्रमुख राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र जनजाति के हितार्थ जल्द से जल्द उक्त कार्य को करते है ताकी ग्रामीण भयमुक्त होकर अपनी भूमि में जीवन यापन कर सकें।

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