राज्यपाल अपना काम न करे तो क्या हम चुप बैठे रहें, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राष्ट्रपति रेफरेंस पर 10 दिनों तक चली दलीलों के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए रेफरेंस में सवाल किया गया है कि क्या क्या कोई संवैधानिक अदालत राज्यपालों और राष्ट्रपति पर राज्य विधानसभाओं से पारित बिलों को मंजूरी देने के लिए समयसीमा लागू कर सकती है।

अदालत ने सुनवाई के दौरान पूछा कि यदि राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदाधिकारी अपने कर्तव्यों को पूरा करने करने में विफल रहते हैं तो क्या वह चुप बैठ सकता है। इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अनुरोध किया कि वह घोषित करे कि तमिलनाडु मामले में दिया गया फैसला सही कानून की व्याख्या नहीं करता। दो जजों की बेंच ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु राज्यपाल मामले में फैसला सुनाया था, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा बिलों पर कार्रवाई करने की समयसीमा तय की गई थी।

कोर्ट ने पूछा- राय मांगने में आपत्ति क्या है?

चीफ जस्टिस की अगुआई वाली बेंच ने 19 अगस्त से सुनवाई शुरू की थी। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पूछा कि जब खुद राष्ट्रपति यह राय मांग रही हैं कि राज्यपालों, राष्ट्रपति पर विधेयकों पर कार्यवाही करने के लिए समयसीमा तय की जा सकती है या नहीं, तो इसमें आपत्ति क्या है? महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, गोवा और छत्तीसगढ़ ने राज्यपालों और राष्ट्रपति की स्वायत्तता का समर्थन किया।

ब्युरो रिपोर्ट

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