बालोद:–सुख साधन में नहीं गुणों में होता है। हम सुख की कामना मन के स्तर पर या शरीर के स्तर पर करते हैं । कोई कार्य मन के इच्छानुसार न हो या मन के विपरीत हो तो हम दुखी या क्रोधित हो जाते हैं । मन और इंद्रियों पर नियंत्रण रखकर ही तनावरहित हुआ जा सकता है। उक्ताशय के विचार संत स्वेत तिलकजी म सा ने महावीर भवन में अपने प्रवचन श्रृंखला में व्यक्त किये।उन्होने कहा कि हमारे तीर्थंकर परमात्माओं ने सुख शांति और मोक्ष का मार्ग बताया है उनके बताएं मार्ग पर चलकर ही सच्चा सुख और आत्मा के परम पद को प्राप्त किया जा सकता है जैन दर्शन के अनुसार हमारे परमात्मा मार्गदर्शक हैं वे पालनहार नहीं है। जैन दर्शन आत्मा के कल्याण पर आधारित है ।क्रोध लोभ, राग द्वेष यह आत्मा का स्वभाव नहीं है किंतु इन कसायों को छोड़ नहीं पाने के कारण हम दुखों से घिरे होते हैं ।यह आत्मा शरीर के अंदर एक कैदी की तरह है, जिस तरह एक कैदी को जेल में कितनी भी सुविधा दी जाए लेकिन वह स्थान उसे रास नहीं आता उसी तरह आत्मा को कसायों से घिरा हुआ मन पसंद नहीं आता। ऐसा व्यक्ति कभी सुख और शांति को प्राप्त नहीं कर पाता। अतः पुरुषार्थ गुणो को प्राप्त करने में लगाएं।भगवान से साधन नहीं साधना मांगे।