*⏩ डॉ. रमन सिंह पूर्व मुख्यमंत्री के क्षेत्र का पेंड्री मेडिकल कॉलेज की सांसें फूलीं – निजी प्रैक्टिस और दुर्व्यवहार ने बिगाड़ी सेहत*
राजनांदगांव (छत्तीसगढ़) :–जहां एक ओर छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष और पुर्व मुख्य मंत्री राजनांदगांव विधायक डॉ. रमन सिंह शहर के समग्र विकास के लिए नई इबारत लिखने की कोशिश में लगे हैं, पर लोगों को अफ़सोस इस बात को लेकर हो रहा है कि 15 साल के लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री जिनका राजनीतिक कार्यक्षेत्र राजनांदगांव है, वहीं की स्वास्थ्य सेवाएं लचर हालत में है। उनके निर्वाचन क्षेत्र के सबसे बड़े सरकारी स्वास्थ्य संस्थान ‘स्व. अटल बिहारी वाजपेयी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, पेंड्री’ की स्थिति किसी बीमार प्रणाली का आईना बनती जा रही है।
उक्त जानकारी राजनादगांव छुरिया
निवासी अकील मेमन ने दी |
*डॉक्टरों की डबल ड्यूटी* –
हॉस्पिटल खाली, क्लिनिक चालू!
मेमन ने बताया की शहर के इस मेडिकल कॉलेज में नाम भले ही राष्ट्रीय स्तर के पूर्व प्रधानमंत्री के नाम से जुड़ा हो, लेकिन जमीनी हकीकत सन्न कर देने वाली है। अस्पताल में नियुक्त कुछ वरिष्ठ डॉक्टर सरकारी ड्यूटी छोड़ अपने निजी क्लिनिक में मस्त हैं। मरीजों के इलाज की जिम्मेदारी छोड़ ये डॉक्टर अपने निवास पर निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं, जिससे ज़रूरतमंदों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता।
*नेताओं की नुमाइश पर खर्च, मरीज बेहाल*
शहर में जब किसी मंत्री या नेता का आगमन होता है, या फिर कोई सांस्कृतिक आयोजन—चाहे राज्योत्सव हो या विवाह समारोह—डीजे, लाइट्स और सजावट पर लाखों फूंके जाते हैं। लेकिन जब बात अस्पताल में सीटी स्कैन, एमआरआई या अन्य जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराने की आती है, तो सरकारी फंड ‘अभाव’ की दुहाई देने लगता है।
*कमिशन-प्रिय’ सौंदर्यीकरण* *सुविधाओं की अनदेखी*
नेताओं और अधिकारियों का फोकस अस्पताल की सुविधाओं पर कम, और प्रतिक्षालय, बाउंड्रीवाल और स्मारकों के सौंदर्यीकरण पर ज़्यादा है—वजह है,कमिशन। मरीजों के जीवन से जुड़ी सुविधाएं या तो जानबूझकर नहीं लाई जातीं, या फिर निजी अस्पतालों की जेब भरने के लिए रोक दी जाती हैं। यह सिलसिला कहीं न कहीं गरीब मरीजों को आर्थिक शोषण की ओर धकेलता है।
*स्टाफ का रवैया: मानो मरीज उपकार मांग रहे हों!*
ग्रामिण क्षेत्रों से आने वाले मरीजों के परिजनों ने गंभीर आरोप लगाए हैं कि कुछ जूनियर डॉक्टर और स्टाफ का व्यवहार अत्यंत अभद्र है। जानकारी मांगने पर उन्हें दुत्कारा जाता है, जैसे वे अस्पताल के नहीं, किसी अजगर की मांद में पहुंच गए हों।
*निजी लैब-हॉस्पिटल की मिलीभगत?*
सबसे बड़ा सवाल यह है—क्या अस्पताल के भीतर ही एक ‘रेफर सिंडिकेट’ सक्रिय है? मरीजों को यह कहकर निजी डायग्नोस्टिक सेंटर्स भेजा जाता है कि “यहां मशीन नहीं है”, जबकि उन्हीं टेस्टों की सुविधाएं अस्पताल में मौजूद हैं—बस चलाने का मन नहीं है।
एक ग्रामिण मरीज के साथ हुए अनुभव ने पूरे तंत्र की पोल खोल दी। सीटी स्कैन के लिए निजी सेंटर भेजे जाने पर जब परिजनों ने एंबुलेंस की मांग की, तो उन्हें डांट-डपटकर भगा दिया गया। इससे साफ जाहिर है कि अस्पताल में कुछ असिस्टेंट डॉक्टर और स्टाफ निजी लाभ के लिए एजेंट के तौर पर काम कर रहे हैं।
*एम्बुलेंस की सेवा बनी सरदर्द*
राजनांदगांव में निजी एंबुलेंस की बाढ़ है उन्हें एंबुलेंस में क्या सुविधा होनी चाहिए इसकी अनदेखी की जाती है नहीं स्वास्थ्य विभाग कमल और ना ही परिवहन विभाग एंबुलेंस होने और उसके साथ में सुविधाओं को नजर अंदाज करती है। स्वास्थ्य विभाग जिला प्रशासन के लापरवाही से एंबुलेंस का रेट मनमाना है, सेवा के नाम पर लगाए गए एम्बुलेंस भी ले रहे हैं यहां तक रायपुर में जाने का किराया 3500 ₹ से 4000₹ मरता क्या न करता वाली स्थिति पर मरीज इंजन और पिस्टन की सरकार को कोश रहा है मरीज और मरीज के परिजन आखिर करेंगे क्या शिवाय सिस्टम को कोसने के।
अकील मेमन ने मेडिकल कॉलेज में हो रही अवस्थाओं को सुधार करने की अपील शासन से की है |